तुम लार टपकाते रह गए सोच में पकवान की,
और हम बजा गए तुम्हारे रोटी, कपड़ा, मकान की,
दे के तुम्हे कसम मंदिर और भगवान की,
बजा रहे हैं अब हम तुम्हारे धंधे और दुकान की।
पहले स्कूलों में बजाई हमने ठोक के विज्ञान की,
फिर पंजाब में हुई टना टन खेती और किसान की,
तब जाकर बारी आई बजाने जय जवान की,
एक फूटी कौड़ी की भी कीमत न बची इंसान की।
क्या पिछले ७० सालों में इतनों की इतने में इतनी बजाई थी कभी? नही न? क्या समझे? नही समझे? हा हा हा। ही ही ही।
मोदी! मोदी! मोदी!